
Maha Kumbh नागा साधु संसार की मोह-माया से मुक्त होकर भगवान शिव की आराधना में लगे रहते हैं। महाकुंभ के दौरान नागा साधु शाही स्नान से पहले 17 शृंगार करते हैं जो उनके आंतरिक और बाह्य शुद्धिकरण का प्रतीक होते हैं।
नागा साधु के शृंगार और उनका धार्मिक महत्व महाकुंभ 2025 का आयोजन इस साल प्रयागराज में हो रहा है जो आज सोमवार से शुरू हो गया है जो 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन महाकुंभ का समापन होगा। नागा साधु. इन साधुओं की जीवनशैली और उनके शृंगार की परंपराएं सालों से लोगों के लिए एक रहस्य बनी हुई हैं। नागा साधु, जो संसार की सभी मोह-माया से मुक्त होकर भगवान शिव की आराधना में लगे रहते हैं शाही स्नान में भाग लेने से पहले 17 शृंगार करते हैं कहा जाता है कि यह शृंगार उनके आंतरिक और बाह्य शुद्धिकरण का प्रतीक होता है. इन सभी शृंगारों के बाद, नागा साधु शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं, जहां उनका उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा की शुद्धता को सिद्ध करना होता है। इस साल महाकुंभ 13 जनवरी को शुरू होकर 44 दिनों तक चलेगा. पहले शाही स्नान का आयोजन 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन होगा, जिसके बाद आम लोग भी पवित्र डुबकी लगाएंगे।
यह है नागा साधुओं के 17 शृंगार-
- भभूत (पवित्र भस्म)
- लंगोट (त्याग की निशानी)
- चंदन (शिव का प्रतीक)
- चांदी या लोहे के पैरों के कड़े (सांसारिक मोह से मुक्ति का प्रतीक)
- पंचकेश (पांच बार लपेटे गए बाल)
- अंगूठी (पवित्रता का प्रतीक)
- फूलों की माला (भगवान शिव की पूजा का प्रतीक)
- हाथों में चिमटा (सांसारिक मोह का त्याग)
- डमरू (भगवान शिव का अस्त्र)
- कमंडल (पानी का पात्र, भगवान शिव का)
- गुंथी हुई जटा (धार्मिक प्रतीक)
- तिलक (धार्मिक चिन्ह)
- काजल (आंखों की सुरक्षा)
- हाथों का कड़ा (धार्मिक एकता का प्रतीक)
- विभूति का लेप (शिव का आशीर्वाद)
- रोली का लेप
- रुद्राक्ष (भगवान शिव की माला)