आज बहुत उत्साह के साथ मनाई जाएगी लोहड़ी का पर्व।

Lohri Festival: पौष महीने के अंतिम दिन सूर्यास्त के बाद माघ महीने की पहली रात को मनाया जाने वाला त्यौहार अपने साथ ढेर सारी रौनक व खुशियां लेकर आता है। लोहड़ी से अभिप्राय है-पौष, माघ की कड़कड़ाती ठंड से बचने के लिए आग जला कर तापना व गर्मी देने वाले खाद्यों का सेवन करते हुए आनंद मनाना। लोहड़ी मुख्य रूप से किसान समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इसलिए इसे फसल का त्योहार भी कहा जाता है। किसान अपनी कटी हुई फसल को अग्नि देवता को अर्पित करते हैं और समृद्धिशाली साल की कामना करते हैं। लोहड़ी का त्योहार सर्दियों के मौसम के अंत और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है।
लोहड़ी शब्द तीन अक्षरों के मेल से बना है-लोहड़ी (ल-लकड़ी, ओह-सूखे उपले, ड़ी-रेवड़ी)। इस पर्व के आने से सप्ताह भर पहले ही गली-मोहल्लों में बच्चे पारंपरिक गीत गाते हुए हर घर से लोहड़ी मांगते हैं। लोग भी हंसी-खुशी बच्चों को रेवड़ियां, मूंगफली, मक्की के दाने व पैसों के रूप में लोहड़ी देते हैं। पौराणिक मतानुसार इस दिन कंस ने कृष्ण को मारने हेतु लोहिता राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे श्रीकृष्ण ने मार डाला था। इसी कारण लोहिता पर्व मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व मूलतः आद्यशक्ति, श्रीकृष्ण व अग्निदेव के पूजन का पर्व है। लोहड़ी पर अग्नि व महादेवी के पूजन से दुर्भाग्य दूर होता है, पारिवारिक क्लेश समाप्त होता है तथा सौभाग्य प्राप्त होता है। लोहड़ी की लौ अर्थात अग्नि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में जलाई जाती है। यज्ञ पर अपने जामाता महादेव का भाग न निकालने के दक्ष प्रजापति के प्रायश्चित्त के रूप में इस अवसर पर परिजन अपनी विवाहिता पुत्रियों के घर वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि भेजते हैं। तभी से लोहड़ी के मौके पर नवविवाहित बेटी के मायके से उसकी मां कपड़े, मिठाइयां, गच्चक एवं रेवड़ी के अलावा अनेक तरह के उपहार अपनी बेटी के लिए उसके ससुराल में भेजती है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।
लोहड़ी किसानों के लिए विशेष रूप से सार्थक है, क्योंकि यह गेहूं, गन्ना और सरसों जैसी रबी फसलों की कटाई का मौसम है। यह बुवाई के मौसम के अंत और एक नए कृषि चक्र की शुरुआत का भी प्रतीक है।
कृषि से परे, यह त्योहार समुदायों को प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और समृद्धि और उर्वरता के लिए आशीर्वाद मांगने के लिए एक साथ लाता है। कई लोगों के लिए, यह परिवार और सांप्रदायिक सद्भाव के महत्व की याद दिलाता है। आज भी लोहड़ी का त्योहार भव्य और जीवंत बना हुआ है। शाम को लोग अलाव जलाकर लोकगीत गाते हैं, भांगड़ा और गिद्दा जैसे पारंपरिक नृत्य करते हैं और गुड़ रेवड़ी बांटते हैं। तिल, गुड़, पॉपकॉर्न और मूंगफली जैसी चीज़ों को आभार के तौर पर अग्नि में डाला जाता है। इस अवसर पर मक्की की रोटी, सरसों का साग, तिल के लड्डू, गज्जक और रेवड़ी तैयार किए जाते हैं।